उलझे रिश्तों की अनसुलझी डोर.........

 कभी कभी किसी से ◆
हाथ छुड़ाने की ◆
जरूरत ही नहीं पड़ती ◆
साथ रह कर भी बिछड़ जाते है। ◆
मकां एक रहता है। पर ◆
कमरे अलग अलग हो जाते है। ◆
रिश्ते बनाये थे बनाने वाले ने ◆
पर निभाने वाले बिगड़ जाते है ◆
रिश्ता दिलों का जोड़ है। ◆
पर कभी दिलों को ◆
निचोड़ कर चले जाते है। ◆
रिश्ता दिलों का एहसास ◆
कभी वो एहसान जता के ◆
तोड़ देते है। ◆
रिश्ता दो दिलों का बंधन ◆
पर वो उसमें गांठ लगा के ◆
भूल जाते है। ◆
उलझे रिश्तों की उलझन में ◆
उलझ कर रह जाते है। ◆
कभी कभी दो अजनबी ◆
अनजान रिश्तों में बंध ◆
जन्मों के रिश्तों में ◆
बंध जाते है। ◆
रिश्ता ◆
आंसू और विश्वास का ◆
निशब्द निश्वास का ◆
रिश्ता ◆
एक अनजाने एहसास का !!!◆◆◆





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