तुम और मैं....... मैं और तुम

तुम और मैं.....
दो जिस्म एक जान,
तुम बादल मैं कोहरा,
तुम आसमां मैं बिजली,
तुम्हारी यादों में मैं,
मेरी यादों में तुम,
रोज भटकते है।
ख़्वाब बनकर,
कभी धरातल के
अहसास बनकर,
तुम मेरी माटी में,
समाये हो बीज बनकर।
मैं तुम्हारे शून्य में,
फैली हूँ। आग बनकर
हवा में सुगंध बन,
तुम मुझमें खोये हो।
रात की चांदनी बन,
मैं तुममें बसी हूँ।
ये कैसी तड़प.....
कैसी बेचैनी......
तेरी याद भर से,
भीग जाती हूँ।
सिर से पांव तक।
तेरे बिना,
मेरा नाम अधूरा,
मेरी पहचान अधूरी।
तेरा सम्मोहन, मेरी गहराई
मिलकर बनते,
एक इकाई।
अंजान राहो पर,
कदम से कदम मिला
बढ़ रहे है।
जिंदगी के सफ़र में।
कभी//कभी
सोचती हूँ, अगर तुम
बिछड़ गये तो,
मैं कैसे जी पाऊँगी।
शायद नहीं जी पाऊँगी।
बस आसमां में,
चाँद के निकट,
तारा बन जाऊँगी।
फिर हर रोज़,
तुम्हें निहारा करुँगी,
तुमसे आंख मिचौली
खेला करुँगी।
एक अनकहा डर....
मुझे रोज रुलाता है।
तेरे बिना अब मुझे....
जीना नहीं आता है।
नहीं आता है !!!
















टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

प्यार के रूप अनेक

कौन किससे ज्यादा प्यार करता है??