कशमकश.............

कशमकश...........................
जीवन सफ़र में,
जिस्म में रहा.....
सांसो के भरोसे चला है। तू
क्या पाया क्या खोया तूने
इस सोच में वक़्त गवायां है।
बदलते मौसमों सी,
बदलती तेरी कहानियां
धड़कनों में सिमटा
अश्क़ो में बहा है। तू
नंगे बदन कपड़ों में लिपटा
रूह में बेहिसाब रोया है। तू
हजार गलतियां तूने की
हजार गलतियां ज़माने ने की
ये सोच सोच कर
जिस्म की सलवटों में दफ़्न हुआ है। तू
उम्र के हर पड़ाव पर
अकेला पड़ा है। तू
ऐ बन्दे अब ये बता
क्या पाया क्या खोया है। तूने
बस सांसो की उलझन में
सांसो के सहारे जिंदा रहा है। तू
मंजिल की तलाश में
बीहड़ रास्तों की भटकन में
अब तक भटक रहा है। तू
मोटे अश्क़ो को रुमाल में छिपा
गैरों की महफ़िल में
खुद को ढूंढ रहा है। तू
सुबह से शाम/शाम से सुबह
बस यू ही दिनों की गिनती
बढ़ा रहा है। तू
बोझील पलकों को
ख़्वाबो के सहारे
हर रात सुला रहा है। तू
ये बन्दे अब ये बता
क्या पाया क्या खोया तूने
जीवन सफ़र में,
बस जिस्म के रहा
सांसो के भरोसे चला है। तू  !!!!!!








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