दोनों आसमां के फ़रिश्ते सूरज...चंदा......

तुम सूरज,... मैं चंदा...
रहते है दोनों आसमां में
तुम खुद जल औरों को रौशनी से नहलाते हो...
मैं शांत शीतल बन सब को नींदों का सुकून देती हूँ...
मैं रोज घटती बढ़ती रहती हूँ...
मैं मन हूँ,... और तुम तन...

तुम और मैं
दो जिस्म एक जान,,...
उतरते है। जब आसमां से
पहाड़ी पर सैर के लिए,,...
तुम सागर में खो जाते हो,,...
मैं तुम में विलीन रहती हूँ। पहले से

तुम दिन के पहरी...
मैं रात की पहरी...
तुम कण/कण में खिलते हो...
मैं जन/जन में मचलती हूँ...
तुम झील/ताल सब में चमकते हो...
मैं सब में मद्धम रौशनी भरती हूँ...

तुम पौ फटते उग आते हो...
मैं रात होते खिल जाती हूँ...
मैं तुम में तुम सी हो जाती हूँ...
तुम रात में छिप जाते हो...
मैं रात की रानी...
तुम दिन के राजा
कहलाते हो...
दोनों आसमां के फरिश्ते
पृथ्वी का जहाँ सजाते है...
सजाते है...!!!









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