भूल हुई.......

भूल हुई जो छांव की तलाश की
धुप की घाटी में खड़ी हो
यहाँ तो निर्जन आसमां
सुनी धरती
सर/सर की आवाज़ करती रेत
पवन के सूखे नमकीन झोंके
मौसमों को धोखा देती
पीपल, बड़ की जटाएं
दूर दूर तक फ़ैली उदासी
पंछियो के शोर से हैरां है!!

भूल हुई जो खुशियों की तलाश में
गहरे सागर में उतरी
वो तो निर्जन खाई है
पैरों में छाले पड़ गए
हाथों की लकीरें मिट गई
चेहरे पर धूल की परत चढ़ गई
झुंझलाहट में अपनी डगर भूल गई
मंजिल का कुछ पता नहीं
क्या पता अब कौन सा रास्ता किस ओर...!!

भूल हुई जो सपनों के बाग से
खुशियां चुराने की कोशिश की
आँखों में नमी भरे
होंठों से हँसती रही
सबकी खुशियों की खैर मनाती रही
खुद दिल ही दिल में बुझती रही
नदियां के पानी में उतर सोती रही !!









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