अँजुरी भर प्यार.........

तुम लाना.....
एक मुट्ठी सुकूं
अपनी अँजुरी में
डाल देना मेरी झोली में
मेरा भरोषा लौटा देना
अपने नेह से
मैं अपने पल्लू में
गांठ लगा लूंगी
तुम्हारे स्नेह का
तुम उत्सव का
चारों पहर ढूंढ़ लाना
भर देना
मेरी जिंदगी में
तुम संघर्ष में
मेरा सम्बल बनना
मैं विजय पताका
तुम्हारे नाम कर दूँगी
तुम शरद में
ओस में डूबे गुलाब लाना
मैं उस गुलाब में डूब जाऊँगी
तुम संग
तुम उस तालाब नीचे आना
जहाँ अमराई चटकी है
सारे गीले-शिकवे भूल
गले लग जायेंगे
दोनों आधे-आधे
पुरे हो जायेंगे
पुरे हो जायेंगे.....!!!







टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

प्यार के रूप अनेक

कौन किससे ज्यादा प्यार करता है??