ख़ामोश अल्फाज़........!!!

खामोश अल्फाज़
दर्द सहते है।
यादों में
चुपचाप रोते है।
कलम से निकल
रीते पन्ने भरते है।
चीख चिल्ला
वहीँ पसर जाते है।
कभी जंगल में
खो जाते है।
कभी मानव की
सरपट भागती
दौड़ में शामिल हो जाते है।
अपने बदन में जलते
दूसरों को सुकूं
पहुंचाते है।
जिसके पास जाते
उस जैसे बन जाते है।
न करते कोई शिकायत
हर महफ़िल में
खड़े हो मुस्कुराते है।
नँगे बदन की नँगी भाषा,
कभी राजशाही भाषा,
हर तड़प में रोते
हर खुशी में हँसते है।
न कोई आकार प्रकार
न कोई रंग
जो जैसे चाहे
उसमें ढल जाते है।
भूत, वर्तमान, भविष्य
सबमें खुशबू भरते है।
चेतन मन अवचेतन मन
सबमें आलिंगनबद्ध होते है।
विज्ञान में चमत्कृत
लोगो में भ्रमित भी होते है।
वक्त की रफ्तार में बहते
जिंदगियों में ठहर भी जाते है।
खामोश अल्फाज़
जो जैसे चाहे
उसमें ढल जाते है।
उस जैसे बन जाते है।
उस जैसे बन जाते है...!!!










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