अजनबी कौन हो तुम......???


तुम कौन हो
नहीं जान पाई मैं
सब जानकर भी
लगता है। नहीं जान पाई मैं तुम्हें
अजनबी तुम कौन हो
बड़े अपने से लगते हो
ढेरों बातें करती हूँ। तुमसें
पर लगता है। एक अरसे से
तुमसें बात नहीं हुई है।
पता नहीं ऐसा क्यूँ लगता है
तुम खुद में उलझे हुए हो।
पर मेरी उलझनें
बड़ी बारीकी से सुलझाते हो।
तुम दुनियादारी समझते हो
मैं पागल कुछ नहीं समझती
इसलिए इतनी परेशान हो जाती हूँ। शायद
तुम्हारा मेरे जीवन में आना
पता नहीं तुम्हारे लिए क्या है।
पर मेरे लिए तो मेरा पूरा आसमां/पूरी ज़मी है।
तुम आजकल कुछ खोये/खोये से लगते हो
पूछती हूँ तो बताते भी नहीं। शायद मुझ पर यकीन नहीं
या बताना ही नहीं चाहते, क्या पता क्या है क्या नहीं है।
तुम्हारे दिल में
तुम्हारा यू बातें छुपाना मेरे रोने का कारण है।
कितने जिद्दी हो तुम 
सबको खुश करने की फिराक में लगे रहते हो
पर हम सबको खुश नहीं कर सकते है।
ये बात तुम भी जानते हो
पर फिर भी सबको खुश करने में लगे रहते हो। क्यूँ?
तुम्हारा यू खोया/खोया रहना 
मेरी घुटन का कारण है।
मेरी नींदे उजड़ने का भी कारण है।
अजनबी कौन हो तुम
बड़े अपने/अपने से लगते हो
मेरे हृदय में बसते हो
मेरे जहन में उतरते हो
मेरे दिल में रहते हो
अजनबी कौन हो तुम....???














टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

पीड़ा...........!!!

एक हार से मन का सारा डर निकल जाता है.....!!