मेरी अंतरात्मा.....!!

मेरी अंतरात्मा में
एक भूचाल आया
संमुन्दर का तूफान
मेरी छाती पर आ धमका
आँखों से नीर की बौछार हुई
हर तरफ नमी बिखर गई
ऐसा लगा मानो
मन को दीमक चाट गईं
हर आस पर 
धूल की परत चढ़ गई
मकड़ी के जालों में लिप्टी
हर उम्मीद 
मुझे नीचे धकेल रही है।
बर्फ के पहाड़ 
बदन जमा रहे है।
आँखे रोई
होंठ हँसे
जिस्म
अपनी रफ़्तार से चल रहा है।
वक्त के दरिया में
घड़ी की सुइयां समा रही है।
रंगमंच पर कठपुतलियां
कर्तव दिखा
अपना अस्त्वि तलाश रही है।
पर जिन्दा अभिनय करना भूल गयी है।
मन में अंगारे जल
राख में तब्दील हो गए
हर रिश्ते का सच जान
विश्वास की डगर
पाताल में धस गईं
मेरा प्रतिबिम्ब
अब ओझल होने लगा है।
मेरी स्मृतियाँ
मानसपटल से
गायब होने लगी है।
लेकिन.....
मेरी मुस्कुराने की अदा
अब भी जारी है।
भावनाओं में बहने की अदा
अब भी जारी है!!!












टिप्पणियाँ

  1. वाह्ह्ह...बेहद.गूढ़ अर्थ समेटे आपकी आध्यात्मिक रचना बहुत अच्छी.लगी.नीलम जी...👌

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