विश्वास की लौ........

सुनो.....
तुम दर्पण बन जाओ
मैं उसमें अपना रूप संवार लेती हूँ।
कर लेती हूँ। अपने उलझे बालों में कंघा
आंखो में काजल डाल लेती हूँ।
अपने माथे पर वो चमकीली बिंदिया भी लगा लेती हूँ।
जो तुम लाये थे। उस दिन बड़े चाव से

सुनो.......
तुम पानी बन जाओ
मैं अपनी प्यास बुझा लेती हूँ।
तुम शर्बत बन जाओ
मैं उसमें शक्कर सी घुल जाती हूँ।
तुम मेरे गिलास का पानी बन जाओ
मैं तुम्हें अपने होंठो से लगा लेती हूँ।

सुनो.......
तुम हवा बन जाओ
मैं अपनी सांसो के जरिये तुम्हें खुद में समा लेती हूँ।
तुम मेरे कमरे का पंखा बन जाओ
मैं उस पंखे के नीचे कुछ देर सुस्ता लेती हूँ।
तुम मेरी बालकनी में ठंडी ब्यार बन आ जाओ
मैं अपने चेहरे पर वो ब्यार महसूस कर लेती हूँ।
तुम हवा के साथ रात को मेरी छत पर आ जाना
मैं तारों के साथ कुछ पल तुम्हारे साथ बिता लूंगी।

सुनो.......
तुम बारिश की बूंदे बन जाओ
मैं तुम संग नहा लेती हूँ।
तुम मेरे आंगन में आ जाओ
मैं कुछ देर तुममें कागज़ की किस्तियां चला लेती हूँ।
तुम मेरे बगीचे के गुलाब पर ठहर जाना
मैं उस गुलाब की खुशबू को खुद मैं कैद कर लूंगी।
तुम सावन में रोज बरसना
मैं तुम्हें रोज महसूस करना चाहती हूँ।

सुनो.......
तुम आकाश बन जाओ
मैं तारा बन तुममें रह लूंगी।
तुम सूरज की किरणें बन जाओ
मैं तुम संग यहाँ से वहाँ तक फैल जाऊँगी।
तुम चाँद बन ज़मी पर उतरना
मैं झरना बन तुम्हें खुद में डूबा लूंगी।
तुम विश्वास की लौ बन जाना
मैं निःस्वार्थ तुममें खो जाऊँगी।
तुम्हारी लौ में मैं
तुम्हारी हो जाऊँगी।
तुम्हारी हो जाऊँगी!!!











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