वर्षा ऋतु.......

वर्षा ऋतु आई
जम कर घटायें बरसी
मेरा चंचल हृदय
मुस्काया
बिन शब्दों के
तान छिड़ी
बिन घुँघरू
पैरों को ताल मिली
बिन सिंगार
चेहरे की आभा निखरी
चारों दिशाओं में
मौसम लहराया
मन के आंगन में
सोंधी महक बन तू आया
मीठी छुअन बन महसूस हुआ
ये देख काली घटाये बौराई
झुंझलाई
जम कर बरसी
पागलों सी
रच रच बरसी !!!























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