बारिश की बूंदे बन धरती के गर्भ में समा जाने का दिल चाहता है.....

बारिश की बूंदे बन गिरना चाहती हूँ, आसमां से
समा जाना चाहती हूँ, इस धरती के गर्भ में
विदाई लेना चाहती हूँ, मतलबी दुनिया से
मन मुरझाई पवन का झोंका बन चूका
टूटे पत्तो पर अश्क़ बन ठहरा है।
दिल रोने के लिए काले बादलों का सहारा लेना चाहता है।
अपने परायो का भेद तलाशना चाहता है।
गहराई नसीब की नापना चाहता है।
गैरों को इल्ज़ाम देने से पहले खुद को इल्ज़ाम देना चाहता है।
किसी पर यक़ी न करने का पैगाम देना चाहता है।
अब खुद से रूठ जाने का दिल चाहता है।
रेत में रेत बन उड़ जाने का दिल चाहता है।
आँखों की नमी में बह जाने का दिल चाहता है।
बारिश में बारिश बन
इस धरा में सुख जाने का दिल चाहता है !!!







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