नैसर्गिक प्रेम भाव......

अतीत की छाया, वर्तमान की धुप
देखते-देखते कितना कुछ बदल गया....।
चौमासे का सावन आया....
मेरे महबूब का संदेशा लाया....
उसके स्वभाव में प्रेम बसा....
मेरे स्वभाव में वो बसा....
मेरी हर पाती में....
उसका जिक्र होता है....।
वो ही मेरा मीत,.... मेरा सखा होता है....।
हमारा अहंकार परस्पर टकराता है....।
एक-दूसरे से वाद-विवाद के बाद....
नैसर्गिक प्यार कर...........
एक-दूसरे को बाँहो में सुलाते है....।
चाँद-तारों की कहानी सुना....
थपथपाते है....।
हमारा प्रेम...........
किसी नाम किसी पैमाने का मोहताज़ नही....
बस अहसास की धारा में लिपट....
सोते है,.... जागते है....।
दिन के हर पहर में....
बुँदे बन समाते है....।
तस्वीर से बातें कर....
हकीक़त में सामने पाते है....।
चुम्बनों की बौछार से....
एक-दूसरे को नहलाते है....।
हर बंधन में बंधे....
हर बंधन से मुक्त....
प्रेम रस में पगे....
प्रेम की धारा में बह....
समाहित हो गए है....।
अविभाजित हो गए है....!!!












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