काश.... तुम मुझे न मिले होते.....!!!
काश.... तुम मुझे न मिले होते....
मन को पलाश सा दहका....
गुलाब सा महका....
निर्जन टापू पर छोड़ दिया तुमनें....।।
मन में स्नेह की लता रोप....
करुणा से सींच....
प्रलय की आँधी में झोंक दिया तुमनें....।।
गोधुली बेला के प्रणय सा मिल....
मन में ख्वाइशों का दंगल ला....
हिम पर्वत में फिर से दफ़ना दिया तुमने....।।
आँखों को काले-बादलों के....
नियम-कायदे सिखा....
बिन मौसम बारिशों के तोहफे से सज़ा दिया तुमनें....।।
नीले आकाश में उड़....
पृथ्वी की अपार वेदना को....
मात्र कुछ शब्दों की जलधारा से शांत करना चाहा तुमनें....।।
तुम्हारा प्रेम छन-भंगुर था....
जो जिस्म की ज्वालामुखी में शांत हो गया....
मेरा प्रेम हरसिंगार के फूलों सा था....
जो अब भी झर रहा है....।।
खारे पानी की झील में....
मैं अब भी वंसी-तट की नदियां सी बह रही हूँ....।।
पर तुम सदाबहार के फूल बन....
अब भी सुदूर अफ्रीका के वनों में....
भटकते से प्रतीत हो रहे हो....।।
जीवन अग्नि में प्रभातफेरी....
लगाते से प्रतीत हो रहे हो....।।
काश.... तुम मुझे न मिले होते....
तो मेरे नुकीले-अस्थि....
मुझे यु न चुभे होते....!!!
मन को पलाश सा दहका....
गुलाब सा महका....
निर्जन टापू पर छोड़ दिया तुमनें....।।
मन में स्नेह की लता रोप....
करुणा से सींच....
प्रलय की आँधी में झोंक दिया तुमनें....।।
गोधुली बेला के प्रणय सा मिल....
मन में ख्वाइशों का दंगल ला....
हिम पर्वत में फिर से दफ़ना दिया तुमने....।।
आँखों को काले-बादलों के....
नियम-कायदे सिखा....
बिन मौसम बारिशों के तोहफे से सज़ा दिया तुमनें....।।
नीले आकाश में उड़....
पृथ्वी की अपार वेदना को....
मात्र कुछ शब्दों की जलधारा से शांत करना चाहा तुमनें....।।
तुम्हारा प्रेम छन-भंगुर था....
जो जिस्म की ज्वालामुखी में शांत हो गया....
मेरा प्रेम हरसिंगार के फूलों सा था....
जो अब भी झर रहा है....।।
खारे पानी की झील में....
मैं अब भी वंसी-तट की नदियां सी बह रही हूँ....।।
पर तुम सदाबहार के फूल बन....
अब भी सुदूर अफ्रीका के वनों में....
भटकते से प्रतीत हो रहे हो....।।
जीवन अग्नि में प्रभातफेरी....
लगाते से प्रतीत हो रहे हो....।।
काश.... तुम मुझे न मिले होते....
तो मेरे नुकीले-अस्थि....
मुझे यु न चुभे होते....!!!
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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