वक्त की मार.....!!!
शब्दों का मायाजाल है।
मनुष्य ही मनुष्य का पैना हथियार है।
जीवन के जोड़-घटाव सत्य-असत्य,
सब पर वक्त की मार है।
सबकी नज़रो में फरेब है,
जीवन असंतुलन का ऐब है।
वक्त का पहिया शक्तिशाली है।
जीवन नईया मंझधार में फंसी है।
सबकों साहिलों पर बिखरे,
मूंगे-मोतियों का इंतज़ार है।
मानसिकता में गुलामी भरी है,
फिर भी क्रांति का इंतज़ार है।
प्रमाणिकता किसी बात की रही नहीं,
लिबास, भाषा सब पर दोहरी मानसिकता
का अभिमान है।
समझदारों के कौम में,
समझदारी का आभाव है।
खुद को सही साबित करने का बुखार है।
सामाजिक न्याय की लालसा है,
पर खुद किनारे खड़े तमाशा है।
क्या विडम्बना है?
हर बात चरितार्थ,
राजनीति व्यभिचार,
संघर्ष डांवाडोल,
कोई कुछ समझने को तैयार नहीं
समझाने में सब होशियार है!!!
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