बहती नदियां.......!!!
गोल करती पत्थर
गांव के बाहर रहती
सबके मन को भाती
शिवालय के पांव छूती
सबको पवित्र करती
कर्म-कांड सब करती
उबड़-खाबड़ रास्तों में बहती
सागर में जा मिलती
हर शाम डूबता सूरज
निकलता चाँद
सागर में चहल-कदमी करते जहाज
तुमनें-और मैंने जब देखा था।
ये खूबसूरत नजारा
बाँहो में बाँहे डाले
कुछ न बोले थे हम-तुम
बस ख़मोशी से मुस्कुराये थे दोनों
उस नज़ारे को आँखों में कैद कर लाये थे।
अब उस पर कितनी बातें करते है।
जब मन करता है, डूब जाते है।
खो जाते है।
उस खूबसूरत नज़ारे में!!!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें