चाँद की गठरी से गिरती चाँदनी......!!!

चलती सड़क,  ठहरे यात्री
रात्रि पहर में, चाँद की गठरी से गिरी चाँदनी
धरती का अंग घेरती नदियां, झील, तालाब
इंद्रधनुषी रंगों से रंगे हर ख़्वाब
अनुभव के कंक्रीट जंगल में फंसी इंसानियत
सस्ती जिंदगी, महंगी मौत
संसार की इस मृगमरीचिका में कौन तृप्त हुआ है।
सबका कोई न कोई ख़्वाब अधूरा रह गया है।
भावनाओं को कुचलकर अपंग किया गया है।
फिर गहराई को न समझने का कलंक लगाया गया है।
अर्धरात्रि को झूलते सपनें
निंद्रा भंग करते है। फिर
नैनों की डोरी में बंधे सपनें करवटें बदल-बदल सुबह करते है।
फिर एक दिन और आ जाता है। बिन बोले
बिन पूछे हमसे हमारा दिन छीनने!!!




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