जरुरी नही हमारी हर कल्पना साकार हो जाये........!!!!


जरुरी नहीं जो सोचे वो मिल जाये
गैरों की महफ़िल में कोई अपना टकरा जाये
कल्पनाओं की दुनियां में सब जायज है।
पर हकीक़त इसके बिल्कुल विपरित है।
जिज्ञासा के अधीन हम सब कर गुजरते है।
पर बाद में पछताते भी है।
बिना आंगन का घरौंदा भी सुंदर लग सकता है।
पर मन को भाता नहीं है।
यही हाल हमारा भी होता है।
हर सुंदर चीज आकर्षित करती है।
पर जल्द ही ऊब हो जाती है।
आंनद हमारे मन में होता है।
पर हमारा मन रेतीला हो बीहड़ रास्तों में
भटक रहा होता है।
सारा जीवन सूर्य बन चमकना चाहते है।
पर परिश्रम से मुँह चुराते है।
मानवीय ऊर्जा खत्म हो चुकी है।
ढकोसलों में वक्त गवांते है।
अनुभव हर चीज का चहिये
पर हकीक़त का सामना करने की ताकत नहीं।
भावों की ताजगी,
विचारों की सत्यता सब उधड़ी हुई है।
पर जीवन टेसू के फूल सा दहकता चहिये।
हम ऐसे क्यूँ हो गए है??
हम सब जानकर भी अंजान बन जाते है।
पर इसमे भी किसी की गलती नहीं
हमें सब करना पड़ता है। मन मारकर
ये वक्त का तकाज़ा होता है।
क्या करें ये जीवन है।
कभी-कभी ऐसे ही जीना पड़ता है।
खुद को भूलने के लिए गैरों की महफ़िल में आना पड़ता है।
जरुरी नहीं जो सोचें वो मिल जाये।
हमारी हर कल्पना साकार हो जाये।
साकार हो जाय!!!









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