प्रेम किया जाता है....चाहा नहीं जाता......!!!

सरल शब्द सरल वाणी
किसको आयी है पसंद
सब संपूर्णता  की तलाश में,
असंतुष्ट हुए बैठे है।
सब किस्म के दिल
सब किस्म के दिमाग है। यहाँ
और हर किस्म का प्रेम पलता है। यहाँ
सच्चा प्रेम क्या है?
हम इस पर भी कई सवाल खड़े कर देते है।
जब हम किसी से प्रेम करते है तो,
समग्र में उसे प्रेम करते है, अंशों में नहीं।
उसके हर स्वरूप को स्वीकार करते है।
कितनी भी विरह-वेदना क्यूँ न हो
उसका साथ नहीं छोड़ते है।
लड़ाई-झगड़ा ये सब प्यार में आम है।
इसके बिना प्यार अधूरा है।
प्यार एक गुलाब का फूल एक शूल भी है।
मिलो तो दिल गुलाब सा महकता है।
न मिलो तो दिल में शूल सा चुभता है।
प्यार हो जाता है,
जाँच-परख कर नहीं किया जाता।
यहाँ सौदा भी नहीं होता है।
कि वो प्यार करेगा तभी हम प्यार करेंगे
प्यार किया जाता है। दिल से
दिमाग से नहीं।
प्यार क्षणिक भी नहीं होता,
हमेशा के लिए होता है।
प्यार ईश्वरीय वरदान है।
ये हमें श्रेष्ठ बनाता है।
जीवन जीना सिखाता है।
प्यार हमें ऊँचाई पर ले जाता है,
कभी गिराता नहीं।
प्यार में अगर सत्यता नहीं तो,
स्वर्ण सा गलाकर अशुद्धि दूर कर,
खरा कुंदन बनाया जा सकता है।
पर एक शर्त है।
आप खुद कुंदन हो तभी कुंदन की चाह रखे वरना नहीं।
प्यार करते है तो साथ न छोड़े।
मिले न मिले ऊपर वाले पर छोड़ दे।
आप  निस्वार्थ प्रेम करें
मोल-भाव न करें
प्यार किया जाता है।
चाहा नहीं जाता!!!





















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