चाँद सा मन.......!!!

एक लम्हा फूल बन खिल रहा है....।
एक गुलाब काँटों बीच मुस्कुरा रहा है....।
सर्पीले रास्तों पर इठलाता चल रहा है....।
सुरमई साँझ में अँधेरे की मिलावट क्या हुई,
सोलह कलाओं ये युक्त चाँद आ धमका,
अपनी शीतलता ओढ़े....।
लहराती ठंडी हवा में बदन कांप उठा....
पाइन वृक्षों की लंबी अनुशासित कतारें....
और हवा की अद्भुत जुगलबंदी....
ऐसा सुंदर नज़ारा पहले देखा नहीं था....।
सफ़र का ये रोमांच सोचा नहीं था....।
ऐसा लग रहा है, चाँद साथ-साथ चल
रास्ता दिखा रहा है....।
पहाड़ो के ओट से मुझे ही झांक रहा है....।
मैंने भी खूब बातें की चाँद से....
रास्ते में आते हर नज़ारे से....
आंखे मलती आगे बढ़ रही हूँ....।
चाँद का सानिध्य पा इतरा रही हूँ....।
सारे आडम्बर झटक कर....
खाई में फेंक दिये....।
अपनी मंजिल की और बढ़ रही हूँ....।
अब सब साफ-साफ दिख रहा है....।
रात के अंधेरे में भी एक दिया....
मेरे साथ-साथ चल रहा है....।
सुनी-सुनाई बातों पर यक़ी नहीं रहा अब....
बस आँखों देखा हाल सुनाती हूँ....।
चाँद सा मन रोज़ घटता-बढ़ता पाती हूँ....।
रोज़ रात के बाद सुबह/सुबह के बाद रात पाती हूँ....।
यही हाल सबका पाती हूँ....।
सबका पाती हूँ....!!!











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