जिन्दगी और मुझमें अजब इक़रार है.....।।

हौले-हौले लिखती हूँ
धीमे-धीमे गाती हूँ
जिन्दगी का हर दर्द
लफ्ज़ो में बयां करती हूँ।
जो दर्द न होता है जाहिर
उसे रात में चुपके से
तकिये के हवाले करती हूँ।
जिन्दगी और मुझमें
अजब इक़रार है,
काली रात में जाऱ-जाऱ रोकर
सुबह हँसने का इकरार है।
साजिशों में जल कर
राख हो गयी हूँ।
फिर भी खुद पर एतबार है।
ग़मज़दा जिन्दगी को
झूठी मुस्कान के सहारे
रास्ता पार करा रही हूँ।
मंजिल मिले न मिले
आशा की किरण से
खुद को सवांर रही हूँ।
हौले-हौले आगे बढ़
धीमे-धीमे गा रही हूँ।
अपनी जिन्दगी खुद
अलाप रही हूँ!!
             नीलम अग्रवाल








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