एक ख़ामोश फ़साना है, जो अब संवरता ही नहीं.....!!!
एक ख़ामोश फ़साना है,
अब संवरता ही नहीं।
दिल का दर्द कम होता ही नहीं।
लहू उतरता है, आँखों में
होंठो की दबी हँसी में,
दर्द तड़पता है।
तुमने बंजर बना
रेगिस्तान में छोड़ दिया
एक बहती नदियां को।
एक आशा को
चाँदनी में जला,
धुप में खड़ा कर दिया।
एक विश्वास को
प्रश्नों के बोझ तले दबा दिया।
एक किश्ति को बेवज़ह
लहरों में डूबा दिया।
खुद का स्वार्थ सिद्ध कर
एक मुस्कान को छीन लिया तुमनें।
दुआ नहीं निकलती अब दिल से
बद्दुआ खुद को देती हूँ।
तेरी उम्र हजार साल हो जाये
मुझे मौत आ जाये!!
अब संवरता ही नहीं।
दिल का दर्द कम होता ही नहीं।
लहू उतरता है, आँखों में
होंठो की दबी हँसी में,
दर्द तड़पता है।
तुमने बंजर बना
रेगिस्तान में छोड़ दिया
एक बहती नदियां को।
एक आशा को
चाँदनी में जला,
धुप में खड़ा कर दिया।
एक विश्वास को
प्रश्नों के बोझ तले दबा दिया।
एक किश्ति को बेवज़ह
लहरों में डूबा दिया।
खुद का स्वार्थ सिद्ध कर
एक मुस्कान को छीन लिया तुमनें।
दुआ नहीं निकलती अब दिल से
बद्दुआ खुद को देती हूँ।
तेरी उम्र हजार साल हो जाये
मुझे मौत आ जाये!!
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