भीगी पलकें..........!!!!!


अब कुछ न बोलेंगे सबसे दूर चले जायेंगे
बहुत घुटन हो रही है, न जाने ये क्यूँ हो रही है।
पलकें बार-बार भीग रही है, लब निशब्द हो रहे है।
सब कुछ पास है, फिर भी लग रहा है कुछ पास नहीं
बुखार ने आगोश में भर लिया है।
दर्द ने दिल जख़्मी कर दिया है।
अशांत वातावण ने
हर तरफ आंधी-तूफान ला दिया है।
निर्जन वन में जैसे कूड़ा-करकट भर गया है।
प्यार बाँटने आये थे,
दर्द बटोर कर जा रहे है।
गर्म मौसम में
बर्फ से जम रहे है।
सब कुछ सम्हालने में
खुद खाई में गिर गए है।
कागज़ की कश्ती से नदियां पार कर रहे थे,
इसलिए बीच-धारा डूब रहे है।
कुछ न समझ पाए सबकी खुशी में खुशी ढूंढ़ रहे थे,
अब पता चला हम तो खुद अपनी कब्र खोद रहे थे।
रेलगाड़ी के डिब्बे सी जिन्दगी,
बस यु ही भाग रही है स्टेशन का पता नही,
लगता है किसी पुल से गहरी खाई में गिरेगी।
दुःख के पलड़े में खुशी तोल रहे थे,
क्या पता था, दुःख का पलड़ा भारी निकलेगा।
मुझे रुला कर कर खुद चैन से सो जायेगा।
अनुभव की गहराई में उत्तर ढूंढ़ रहे थे,
प्रश्नों की बौछार ने भिगों कर धुप में खड़ा कर दिया।
अब सर्दी-जुकाम की आड़ में मौसमी बीमारी ने घेर लिया।
जिस्म में ताकत नहीं पलकों पर बुँदे जमा है।
होंठो पर मुस्कान नहीं छलावे से दिल रो रहा है।
कैसे बयां करे ये सब क्या हो रहा है।
बादलों की गर्जना में
ज़ख्मो पर नमकीन बरसात हो रही है।
भरी महफ़िल में
आहे बदनाम हो रही है।
मन की अमावश्या में
मन खो गया है।
तारों की महफ़िल में
तन सुबक कर सो गया है।
सो गया है!!!
















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