बेमेल रिश्ते सी जिन्दगी......!!

बेमेल रिश्ते सी जिन्दगी
हर बात में सवाल-जवाब करती सी लगती है।
उधड़े मन को नोचती सी लगती है।
सैकड़ो बार रो, खुद को मनाया
अपनों ने हर बार निचा दिखाया है।
रखे थे कुछ ख़्वाब दिल में
उनको वक्त के दरिया में बहाया है।
झूठी हँसी चेहरे पर सजा
सबको मनाया है।
कोई जेवर नहीं तन पर
शब्दों के जेवर से मन को बहलाया है।
सबकी नज़रो में अभिमानी हो गए
किसी ने भावनाओं कि कद्र न की
बस तानों से नवाजा है।
गलती तो हुई हमसें
हम दर्द हँस-हँस सहते गये
सबने समझा हमें दर्द ही नहीं होता है।
पूरी उम्र लगा दी रिश्ते समेटने में
अब पता चला हम मतलबी रिश्तो के काबिल ही नहीं है।
कोई जमा-पूंजी नहीं
बस कुछ शब्दों के मोती झोली में आ गिरे है।
उनकों कलम में बटोर
खाली पन्ने भर रहे है।
सुकून अब कहीँ नहीं
फिर भी शब्दों के मरहम से
रिस्ते जख़्म भर रहे है!!



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