दौर नया लेकिन आदते पुरानी है....!!!
दौर नया लेकिन आदते पुरानी है।
चाँद, सूरज से रिश्तेदारी
आज भी निभाई जा रही है।
जितना देखो उतना सत्य लगता है।
धरती की करवट में हर जीव पलता है।
नदी बीच जलकुंभी उग आई है।
हर लहर एक गाथा कह रही है।
अहंकार का प्रदूषण फैला है।
चिंता से जिन्दगी का जहाज
बीच मजधार डूबा है।
काली परछाई
उजली काया को
भयभीत कर रही है।
दृष्टिपटल से हर चीज
गायब हो रही है।
अपने ही आवरण से ढकी
खुद से मुकाबला कर रही है।
दौर नया लेकिन आदते पुरानी है।
एक युग बिता
एक युग आ रहा है।
आज को जीता इंसान
कल की चिंता में रो रहा है!!
चाँद, सूरज से रिश्तेदारी
आज भी निभाई जा रही है।
जितना देखो उतना सत्य लगता है।
धरती की करवट में हर जीव पलता है।
नदी बीच जलकुंभी उग आई है।
हर लहर एक गाथा कह रही है।
अहंकार का प्रदूषण फैला है।
चिंता से जिन्दगी का जहाज
बीच मजधार डूबा है।
काली परछाई
उजली काया को
भयभीत कर रही है।
दृष्टिपटल से हर चीज
गायब हो रही है।
अपने ही आवरण से ढकी
खुद से मुकाबला कर रही है।
दौर नया लेकिन आदते पुरानी है।
एक युग बिता
एक युग आ रहा है।
आज को जीता इंसान
कल की चिंता में रो रहा है!!
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी
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