जीवन खंड-खंड हुआ है....!!

गम्भीता ओढ़
मन खंड-खंड हुआ है।
ताजा हँसी भूल
यादों का गुलाम हुआ है।
समझौतावादी मनुष्य
जीवन रुग्ण हुआ है।
बेतुकापन..
आत्म-प्रताड़ना का कारण हुआ है।
आध्यात्मिकता भूल
जीवन शूल हुआ है।
दुर्भावना में..
विचारों का अतिक्रमण हुआ है।
जीवन के रहस्य
स्वयं के आर-पार नृत्य कर रहे।
छिन-भिन..
जीवन अस्तित्व हुआ है।
अनिर्वाय जीवन
जिन्दगी में..
उदासी का गुलाम
हँसी का मोहताज़ हुआ है!













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