यादों का कड़वा घूंट

मन की तलाशी क्या ली हर रंग ख़फ़ा हो गया
पुराना किस्सा पहाड़ो से गिर गले लग खूब रोया।
आसमां से टुटा बादलों का टुकड़ा
धरती के गले लग खूब रोया।
धीमी आंच पर पकती यादें
आँखों से गुजर जाऱ-जाऱ रोई।
मन के जाले में फंस खूबसूरत स्मृतियां भी
कटी पतंग सी हो गई।
बीत चुकी किस्सों की मिट्टी
कट-कट घायल कर गई।
गठरी भर यादें
जिस्म नमकीन, दिल खाली कर गई।
लिबास यादों का
कुंठा मन की
कनखियों से सलाम कर गई।
जिन्दगी की अफरा-तफरी में
यादों का कड़वा घूंट
पिला कर चली गई!!





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