जीवन जी रही हूँ.....!!



क्या सही क्या गलत,
आजकल कुछ समझ नहीं आता,
विष का प्याला धीरे-धीरे गटक रही हूँ।
सबपे यक़ी कर खुद का यक़ी खो रही हूँ।
कुछ चित्र सहेजे है,
दर्पण में अक्स देख रही हूँ।
अशांत जगह में,
खुद को शांत रख रही हूँ।
गुस्से को पी,
सबको खुश रखने की कोशिश कर रही हूँ।
खुद में उलझती जा रही हूँ,
पर रिश्तें सुलझाने की कोशिश कर रही हूँ।
बेचैन दिल को,
वर्तमान का हवाला दे,
समय से बांध रही हूँ।
मिट्टी के शरीर को,
इत्र से महका,
जीवन जी रही हूँ!!




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