समुद्र सोख रीति हुई है.....!!

धरा में सिमट आसमां में उड़ने की ख्वाइश
जीवन डगर में आई अड़चने
बिचौलिए सी भूमिका निभाते समझौते
कितना कुछ बदल गया देखते/देखते
मेहँदी में छुपी भाग्य रेखा ढूंढती रह गयी।
हाथ जोड़ मिन्नते करती रह गयी।
ताले सभी तोड़े पर बंद कपाट न खुले
दरवाज़े की ओट में छिपकर
उम्मीदें बुनती रह गयी।
धूल ज़मी तकदीर पर
अश्क़ो की बुँदे गिराती रह गयी।
बंधनों में तिलमिलाती रह गयी।
रिश्तों का खोखलापन
जिन्दगी का उजला सवेरा खा गया।
अरमान सारे धूल में मिला गया।
मौन जिन्दगी
शोर ज़्यादा हो गया है।
दायरे में घुटन
आक्रोश में भय प्रकट हो गया है।
तिलिस्म सा जीवन
वक्त की दीवारों में कैद हो गया है!!






टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

प्यार के रूप अनेक

कौन किससे ज्यादा प्यार करता है??