उस पार जाऊँ कैसे....!!!

की जाणां मैं कौन?
की जाणां तू कौन?
सत्य क्या?, असत्य क्या?
कुछ न समझ आये।
सितारों के संकेत क्या?
नसीब के खेल क्या?
मन की दुविधा
तन की व्याधि
क़िस्मत पर
समय की लिखावट
कैक्ट्स जैसे चुभते सवाल
रेत में दफ़्न मायूस उत्तर
डूबती आँखे
गले में घुटती सांसे
ठंडी पड़ती अस्थियां
जीवन का स्वांग रचते
सामाजिक पहलू।
विषैले समझौते
कैसे हर पल डसते है।
खुद के गुनाह ढूंढते
खुद को दोष देते है।
परम्परा में जीने के आदि
सबके बीच सुलग
घाट की सीढ़ियों पर निढाल होते है।
डर के साए में
नदी में उतर
चैन से सोते है!!















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