तस्वीर जीवन की...!!!

जिन्दगी से निकल अखबार के पन्नों में सिमटती जिन्दगी,
नसीब का सिक्का उछालती जिन्दगी।

परम्पराओ को ढोती
भेड़ चाल चलती जिन्दगी।

इंसानी जरूरते
पीतल पर सोने की परत चढ़ा,
सही-गलत का भ्रम पाले
जिन्दगी की टकसाल में
आम होती जिन्दगी।

मान-सम्मान का अपव्यय
बाजारी दृश्य में,
खुद को खंगालती जिन्दगी।

व्यवहार का बेतरतीब सलीका
अनमने रिश्तें
कुंठित भरोसा
जैसे को तैसा में,
निवेश करती जिन्दगी।

सब कुछ भूल कर भी,
कुछ नही भूलती जिन्दगी।

महंगाई के सिक्के जमा कर
जरूरतों पर नसीब का पैबंद लगा,
ख्वाइशों का गला घोंटती जिन्दगी।

गुम हो चुकी जिन्दगी
परिन्दों सी उड़ने की चाह में
जिन्दगी से निकल
तस्वीर में टंगती,
कभी तस्वीर से निकल
जिन्दगी में टंगती,
अपने साहस का परिचय देती जिन्दगी!!






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