दिल के दरवाज़े में अटके शब्द

दिल के दरवाज़े में शब्द अटक जाते है।
मन की किवाड़ में घुट जाते है।
मुँह से निकलते नहीं
सीना चीर जाते है।
गगन में उड़ते
ज़मी में ख़मोश हो जाते है।
कलम से निकल
कागज़ पर महकते है।
कभी शूल से चुभते
कभी जाऱ जाऱ रो
कागज पर निढाल सो जाते है।
मन के हर कोने को झकझोरते है।
समय की दरारों को बांध
मन के भावों में ढलते है।
समय की धुप में
छाया कर आराम भी
दे जाते है!!


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