निर्मोही वसंत...!!!

निर्मोही वसंत...
तुझसे बड़ा छलिया कोई नहीं।
गुलमोहर तेरे बहकावे में लाल हुआ..
पलास तेरे बहकावे में दहक उठा..
अमलतास झट से चटक गई..।

गूंगा मोगरा अपनी सुगंध फ़ैलाने को तैयार हो गया।
गेंदा, गुलाब, चंपा, चमेली सब तेरी बातों में आ गए।

हर रंग मुखर हो उठे..
हर फूल मुस्कुरा उठा..
धरती ने इंद्रधनुषी चुनर ओढ़ ली..
चाँद आसमां में सीना तान खड़ा हो गया..
निर्मोही वसंत...
तूने सबकों कैसे फांस लिया।

निश्चित तू कचनार की ललाई है।
सर्दी की शाम/गर्मी की सुबह है।
फूलों का समारोह..
रंगों का शामियाना..
कृष्ण-राधा की जोड़ी..
और क्या चहिये निर्मोही वसंत।

चंचलता की कोपलें..
पुरवइया ब्यार..
पहाड़ो की ढाल पर बेलों की अटखेलियां..
कवियों का अनोखा अंदाज..
वसंत तेरे मुखोटे में हर तान..।

ऋतुओं का लाडला..
फूलों-फलों का देव..
निश्चय तू कनेर स्वर्ण सा..
होली का गुलाल..
सुंदर तेरा हर श्रृंगार..
सुंदर तेरा हर अंदाज..!!








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