मन की व्याकुलता...!!

अब तो उम्र बितानी है,
हर फैसले पर तीर चला..
अपनी राय सबको सुनानी है।

सिमटे-सिमटे से किस्से,
मोहिनी नदी में डुबो..
अपनी व्याकुलता..
धरती में धसा देनी है।

सांसो के संग्राम में,
पीली माटी को..
निःशब्द कर वैदेही सी,
धरती के आंचल में सुला देनी है।

जीवित विकार..
गंगा की लहरों में प्रवाह कर,
तन-मन को शांत कर लेना है।

अब तो उम्र बितानी है,
जल समाधी से पहले..
छिटके मन को..
बाँहो में भर..
जग की रीत सुनानी है!!




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