यादें.....!!!
तुम्हारी खबर अब आती नहीं
जी बहलता नहीं
रेत की दीवारों में सांसे घुटती है।
मिट्टी के जिस्म से महक आती नही।
तुम्हें दूर तक जाते देखा था,
कमजोर नजरों का हवाला दे
खुद को बहलाया था।
आँसुओ की गरिमा रखी
और बारिश में जा नहाई थी।
ख़यालो में जलकर
खुद से भी बेखबर हो गई हूँ,
तेरी ऊष्मा में जलकर
ठंडी पड़ गई हूँ।
तू ओट में छिपकर मत देखा कर
अब अमावश का अंधेरा हूँ।
दूर तक बंजर पड़ी ज़मीन का,
खुरदुरा हिस्सा हूँ।
मेरा श्रृंगार अब कुछ भी नहीं
यादों में ज़ख्म हरा कर बैठी हूँ।
तेरी तस्वीर से नजरें हटा
तेरा चित्र दिल से मिटाने की
कोशिश कर रही हूँ।
तुझे ही लिख कर
तुझे ही दिल से मिटाने की
कोशिश कर रही हूँ!
Superb Thought
जवाब देंहटाएं