सुख-दुख सबके अपने-अपने है....!!!


सुख भी सबके अपने
दुख भी सबके अपने है।
कोई हँसकर रोता है,
कोई रोते-रोते हँसता है।
यहाँ नजरों में अफ़सोस
तजुर्बों का मेला लगता है
ताजा हवा बाहर निकाल
घुटन को कैद किया जाता है।
निंद्रा की बस्ती में,
थकान चुभोई जाती है।

सुकून की चाहत में
पत्थर से आंसू गिर
भाप बन उड़ रहे है।
मंजिल का पता नहीं
रास्तों पर भटक रहे है।
खामोशियाँ दर्ज कर
खुशियाँ बीन रहे है!
अभावों में जीते
कल की चिंता में मर रहे है!






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