यूं ही तुम्हें पढ़ती रहूँगी सदियों तक...!!

सुनों...
बीती रात को सिरहाने मत रखना।
पीछे छुटा कल भूल जाना।
तुम्हें नभ पर चमकना है।
अपना नया अनुभव लिखना है।
एक समृद्धि तुम्हारा इंतजार कर रही है।
कैसी भी परिस्थिति हो तुम बदलना नहीं।

मौसम बदल रहा है।
जुदा क्यारियों में अब फूल खिलेंगे।
हर फूल से सुगन्ध आएगी।
जो तेरी देह को खुश्बूदार
मन को आनंदित करेगी।

तुम तो बिल्कुल संगीत जैसे हो
हर सुर में ढलते हो,
हर राग में मचलते हो,
हर वाद्य में सुरीले हो जाते हो।

कभी मन करे रोने का तो आ जाना
गले मिल रो लेंगे।
कभी मन के अंधेरी रातों में तारें गिनने का
तो आ जाना मिलकर उस ध्रुवतारें को भी ढूंढ़ लेंगे।
कभी मन करे यूँ ही शिकायत करने का
तो आ जाना सारे गीले-शिकवे नदी में बहा आएंगे।
तुम यूँ ही लिखते रहना
मैं यूँ ही पढ़ती रहूँगी
सदियों तक 
हर रात, हर दिन यूँ ही!!



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