अंतर्द्वंद....

पैरों में पड़ी बेड़िया
हृदय करे चीत्कार
सुने न कोय।

रूप की चंचला
भीगे आँसुअण में,
सुने न कोय।

गुड़हल लाली
आंगन फैली
मेघ गरजे
बिजुरी चमके
शीत लहर
चुभ-चुभ जाय।
अंतर्द्वंद मन का
सुने न कोय।

मन का मेघ
घुमड़-घुमड़
नयनों से बरस जाय।।



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

किस्से-कहानियों के जीते जागते पल (इंतज़ार)

सोच की अंगीठी में जलता व्याकुल मन.........!!!

एक हार से मन का सारा डर निकल जाता है.....!!