जीवन राग....!!!
चाँदी सी चमकती भोर में
जैसे परिन्दें उड़ते है।
वैसे ही उड़ जाना है।
खुले आसमान में।
आत्मा का लिबास भी
अब बदलना है।
गंगा में नहा
नया चोला पहनना है।
फीके उत्सव अब
अमावश के हवाले कर
पूनम के चाँद के समीप सोना है।
किले में पहरे बहुत है,
पीली सरसों में बहती पुरवाई
संग उड़ना है।
ठुकरा दिए
सभी निमंत्रण
अब खुद की परतों को
समझना है।
जीवन राग
समझ नहीं आता।
खारा दरिया
मन लुभाता है।
झुलसा जीवन
मौन होना चाहता है।
संगम की लहरों में
बह जाना चाहता है।
सुबह सूरज के हस्ताक्षर
शाम को चाँद का इंतजार
रात को तारों संग बातें
ये कैसा कुंभ है।
जहाँ डूबना तय है।
बचेगा कुछ नहीं।
सिवाय मौन के!!
जैसे परिन्दें उड़ते है।
वैसे ही उड़ जाना है।
खुले आसमान में।
आत्मा का लिबास भी
अब बदलना है।
गंगा में नहा
नया चोला पहनना है।
फीके उत्सव अब
अमावश के हवाले कर
पूनम के चाँद के समीप सोना है।
किले में पहरे बहुत है,
पीली सरसों में बहती पुरवाई
संग उड़ना है।
ठुकरा दिए
सभी निमंत्रण
अब खुद की परतों को
समझना है।
जीवन राग
समझ नहीं आता।
खारा दरिया
मन लुभाता है।
झुलसा जीवन
मौन होना चाहता है।
संगम की लहरों में
बह जाना चाहता है।
सुबह सूरज के हस्ताक्षर
शाम को चाँद का इंतजार
रात को तारों संग बातें
ये कैसा कुंभ है।
जहाँ डूबना तय है।
बचेगा कुछ नहीं।
सिवाय मौन के!!
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