कठपुतली...!!




सुनों न~~
मुझे यूं परम्पराओं को निभाने का आदेश दे
रंगमंच की कठपुतली सा न बनाओ।
मेरी प्रशंसा कर
झाड़ पर न चढ़ाओ।

सुनो न~~
तुम सागर मैं चट्टान हूँ,
मुझसे न टकराया करो।
मैं बहती नदिया
पत्थर गोल करती हूँ।
वाणी के ये नुकीले वाण
हृदय छलनी करते है।
मुझ पर ये वाण
न चलाया करो।

सुनो न~~
यूं सबके सामने मेरी आलोचना न किया करो।
मेरे प्रेम को छल का नाम न दिया करो।
हर घटनाक्रम का दोषी
मुझे न ठहराया करो।

सुनो न~~
मैं तो नींव में गड़ी पत्थर हूँ,
मीनार की खूबसूरती में नजर कैसे आऊं।
मैं तो अहसास हूँ,
तेरी नजरों में कैद हूँ,
बाहर कैसे आऊँ।
प्रेम की कीमत पर प्रेम हूँ,
हृदय से बाहर आ कैसे धड़कूँ !!






टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

प्यार के रूप अनेक

कौन किससे ज्यादा प्यार करता है??