ऐ रंगरेज....

कहना तो बहुत कुछ है,
पर मैं खामोश हूँ।
जानती हूँ तुझे
तू गुस्से में भी बहुत शांत है।
समय की धारा में बह
आ तो गया मुझ तक,
पर मन ही मन बेचैन है।
तेरे सवालों में मैं सबसे ऊपर
उत्तर में सिर्फ ज़ख्म हूँ।
तू खुद से लड़ रहा है,
ये तेरे शहर का कैसा रिवाज है।



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