मित्रता....प्रेम
आकाश सबका मित्र
धरा सबकी प्रेयसी है।
नदी सबकी साथी
जंगल सबके मित्र होते है।
छू लेता है जो मन को
वो मित्र
असीम आंनद का स्रोत होता है।
आश्वाशन जो देता
वो धूप में छांव होता है।
जो असंभव को संभव कर दे
वो दूर्वा पर ओस की बूंदों सा,
पत्थर पर खिलते फूलों सा होता है।
स्थिर, धीरज भरा होता है,
वो मित्र गहरी संवेदना से भरा होता है।
विशाल हृदय मित्र
सागर बीच बहता जहाज सा होता है।
तट पर पड़े मूंगे-मोती सा होता है।
धरा सबकी प्रेयसी है।
नदी सबकी साथी
जंगल सबके मित्र होते है।
छू लेता है जो मन को
वो मित्र
असीम आंनद का स्रोत होता है।
आश्वाशन जो देता
वो धूप में छांव होता है।
जो असंभव को संभव कर दे
वो दूर्वा पर ओस की बूंदों सा,
पत्थर पर खिलते फूलों सा होता है।
स्थिर, धीरज भरा होता है,
वो मित्र गहरी संवेदना से भरा होता है।
विशाल हृदय मित्र
सागर बीच बहता जहाज सा होता है।
तट पर पड़े मूंगे-मोती सा होता है।
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