ख़त

एक खत लिखा है, इत्र में भिगो
मन की स्याही से।

कोरे पन्नों पर, प्यार की डाल पर
गुलाब खिला एक माला बनाई है।

व्यस्त जिंदगी में ये विरासत लिखी है।
सम्बन्धों की परिभाषा में
एक अनाम रिश्ता लिखा है।
सीमाओं से परे।

कुछ पसंद कुछ नापसंद बातें लिखी है,
मन के जाले साफ कर।

मैं किस मिट्टी की बनी हूँ,
मुझे खुद नहीं पता।
चंद सवालों में पूरी कहानी
और पूरी कहानी में चंद सवालों सी।
निगाहों में कुछ प्रश्न
प्रश्न ही बन कर रह गए।
मैं खुद स्तब्ध हूँ,
स्वीकार जिंदगी में
अस्वीकार सी,
किस पसोपेश में फंस गई।

अपनी उदास जिंदगी में
नीले रंग सी,
सूरज की रौशनी में नहा
कब हर दिशा बहक गई!!







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

पीड़ा...........!!!

एक हार से मन का सारा डर निकल जाता है.....!!