खारा एहसास

मन की दहलीज़ में
विचारों का अंबार लगा है।
खारे मोतियों की कतार में
आंखे लाल हो गई।
रंगीन विचार
कब श्वेत हो गए
पता ही न चला।
कोमल मन
आहत हो चुका है।
गुजरे कल में रोता
आज में मौन हो चुका है।

खनकता स्वर
बावला मन
कब करवटें बदल 
बीतें कल में खोया
कुछ पता नहीं चला।
मधुमास बीता
फिर पतझड़ आया।
कुछ एहसास श्वेत,
कुछ एहसास पीले हो
सूखे पत्तों संग
उड़ गए
रेतीले आसमान में।

झुलसा एहसास
झुलसा मन
झुलसा तन
शून्य को ताकता रह गया।
एक विचार आते
एक विचार जाते
मन को खाई की
सैर करा गए।






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