ध्रुवतारा


अजीब सा आकर्षण है तुममें
तुम्हारी चमकने की आदत
अब तक गई नहीं।

तुम्हारी रौशनी जब
पलाश, और गुलमोहर पर
पड़ती है न
ये दोनों भी मुझे
मुहँ चिढ़ाते है।


सुनहरे बाल जैसे
नर्म धूप में चमकते है न
तुम बिल्कुल वैसे लगते हो।

ये रात को
चाँद से क्या बातें
करते हो तुम?

तुम मोती जैसे निर्मल कैसे हो?
चाँद जैसे सुनहरे कैसे हो?
हीरे जैसे चमकते कैसे हो?

ओ मेरे ध्रुव तारे
तुम तारों के जंगल में
कैसे रहते हो?
सूरज के सामने क्यूँ
नहीं आते हो?
तुम मेरे मन को इतने क्यूँ
लुभाते हो?

तुम आसमान में
कितना सफ़र करते हो?
तुम हमेशा चमकीले तारों से
क्यूँ घिरे रहते हो?
मैं तो शाम से ही
तुम्हारी बाट जोहने लगती हूँ,
पर तुम रोज नहीं आते।
न जाने कहाँ भटकते रहते हो?

तुम इतने अच्छे क्यूँ हो?
श्रम में तन्मय क्यूँ हो?






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