सफ़र जिंदगी का....।

बेतरतीब जिंदगी
कभी ख़यालों में उड़ती है
तो कभी दुनियादारी में।

सफ़र जिंदगी का
धूप में चलता
छांव में रोता है,
कल की फिक्र में।

जिंदगी वक्त के पायदान पर लुढ़क
बस जरूरतें पूरी करती रह जाती है।
और दफ़न ख़्वाईशो की
जिंदा मिशाल बनती है।

रेलगाड़ी सी जिंदगी
मालगाड़ी बन सामान ढोती रह जाती है।
हर स्टेशन पर रुक
दूसरों को ताकती रह जाती है।

जिंदगी की कहानी बहुत लंबी है,
पढ़ते-पढ़ते जब बोर हो जाते है तो
झुंझला कर
अपनी ही जिंदगी को कोस
दूसरे किस्से-कहानियों में डूब
खुद को ताजा कर लेते है।

जिंदगी का सफ़र यूं ही
तड़प-तड़प
गुफ्तगूं कर-कर
सागर की लहरों में डूबो देते है।

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