अनुभव
खुद को बहलाना भी जरूरी है,
खुद को वास्तविकता दिखाना भी जरूरी है।
दर्जनभर किताबों से नहीं
अनुभव से खुद को सलाह दे।
टुकड़ो में बांट ले दिन
एक टुकड़ा खुद के लिए भी रख ले।
धूप भी घनी
छांव भी घना है।
वास्तविकता की नींव में
दम भी घुटता है।
बखान भी मिलता है।
घुटनों भागे बच्चे की आंख में
आई चमक को बताया नहीं जा सकता।
रोगी मां के माथे पर आई चिंता की लकीर को
समझा नहीं जा सकता।
हर दृश्य के पास वाणी नहीं होती
और हर वाणी के पास दृश्य नहीं होता।
बस शब्दों का गुच्छा वर्णन करता है।
कभी पूरा तो कभी अधूरा।
खुद को वास्तविकता दिखाना भी जरूरी है।
दर्जनभर किताबों से नहीं
अनुभव से खुद को सलाह दे।
टुकड़ो में बांट ले दिन
एक टुकड़ा खुद के लिए भी रख ले।
धूप भी घनी
छांव भी घना है।
वास्तविकता की नींव में
दम भी घुटता है।
बखान भी मिलता है।
घुटनों भागे बच्चे की आंख में
आई चमक को बताया नहीं जा सकता।
रोगी मां के माथे पर आई चिंता की लकीर को
समझा नहीं जा सकता।
हर दृश्य के पास वाणी नहीं होती
और हर वाणी के पास दृश्य नहीं होता।
बस शब्दों का गुच्छा वर्णन करता है।
कभी पूरा तो कभी अधूरा।
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