सुलभा

वक्त के सांचे में पकता ये अनमोल जीवन
रोज बदल जाता है अनचाहे ही।
एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी~~
कहानी एक स्त्री की उसके वजूद की
स्त्री का दारोमदार आज भी क्या है?
वही घर परिवार की जिम्मेदारियां और चूल्हा-चौका।
सुलभा यही आज की कहानी की पात्र।

यूं तो सुलभा बहुत सुलझी हुई थी पर घर सम्हालते-सम्हालते बहुत उलझ चुकी थी।
कम उम्र में ब्याही गई सुलभा बहुत कम उम्र में ही प्रौढा बन गई थी।
पति किसी और स्त्री के चक्कर में उसे छोड़ कर चला गया था। उसके 2 छोटे बच्चे थे। घर का सारा काम करती।
और बचे समय में कपड़े सिलती घर चलाने के लिए।
सँयुक्त परिवार था इसलिए वो टूटी नहीं जीवन की गाड़ी चला रही थी।
इसी दौरान पति को पैसों की जरूरत आन पड़ी और वो घर आ गया घर में फसल के पैसे आये हुए थे इसलिए।
सारा काम उसका देवर ही सम्हालता था।
जब उसका पति घर आया हुआ था तभी अचानक कोरोना के कारण लॉक-डाउन हो गया और उसका पति वही घर पर ही फंस गया।मजबूरी में अब वो सबके साथ घर पर ही है।
सब्जियां उगा रहा है और पत्नी को भी वक्त दे रहा है।
उसके घर में अब सब ये देख आश्चर्य चकित है ये बदलाव कैसे हो गया।
एक तरफ सब लोग परेशान है इस महामारी के चलते वही कुछ का जीवन भगवान की दया से ठीक भी हो रहा है।

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