रंगनायक.....

रंग बिना चित्र अधूरे है...,
चित्र बिना रंग अधूरे...।
चित्र एक धारा है तो...
रंग तटबंध...।
एक छोर सफ़ेद है तो...
एक छोर स्याह...।
रंगों का आश्रयस्थल...
नज़रों में कैद है...।

एक चित्र उकेरा...
और उसमें सारे रंग भर दिए...
तेरे नाम से...।
अब रंगों में घमासान है...।

तू परंपरागत रंग लाल...
मेरे कैनवास का...।
ले मैंने पीला मिला...
तुझे सांझ की वेला का...
नारंगी कर दिया...।

तुझसे मेरा गहरा नाता...
समुद्री हरा सा...।
धानी खेत सा...।
सजल नयन सा...।
ले मैंने प्राथमिक लाल...
रंगनायक कर दिया...।







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