सफ़ेद रंग......

सफ़ेद रंग....
बर्फ सा ठंडा
न कोई प्रश्न न उत्तर
एक उदासी, एक एकाकीपन
बेरंग दीवारों का सफ़ेद रंग।
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निश्चित ही सफ़ेद रंग
किसी को आमंत्रित नहीं करता।
न मुस्कुराता है, न रोता है।
बस अपनी जगह पड़ा-पड़ा
फटी नजरों से सबको देखता रहता है।
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पति की मौत के बाद
स्त्रियों को पहनाया जाने वाला रंग
उसकी सभी कामनाओं को
खा जाने वाला रंग
इसी के सहारे बीतता है फिर
उसका शेष जीवन।
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दोपहर का रंग
धूप में बहते पसीने की गंध।
बुजुर्गों के उकताहट का रंग
उनके सफ़ेद बालों की तरह।

उनकी खीज़
सुखी रोटी के टुकड़ो की तरह
जो उनके गले मे अटक
खाँसती रहती है।
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सांझी छत के बिखरने का रंग
एक-दूसरे के गम न बांट पाने का रंग
आंगन के बीच दीवार खींच जाने का रंग
पुरखों की ओर ताकती आंखों का रंग
पश्चाताप का रंग।
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ताजे दूध पर आई मलाई का रंग
दही से निकलते मक्खन का रंग
गर्म भात पर उंडलते
देशी घी का रंग।
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बच्चों की जिद्द का रंग।
आज सारे रंग मुझे मिलने चाहिए।
बच्चों की खुशी में मिलते सारे रंग।
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सफ़ेद रंग यूं तो बहुत फीका फीका सा है।
पर सारे रंगों का घर भी है।
सारे रंग यहीं आ खिलते है, सजते है।

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